- 26/04/2024
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“छास में है कुछ खास” !
गरमीयों मे हेल्थ फ्रेंडली लोगों का सबसे पसंदिदा हेल्थ ड्रिंक ! आप को भी याद होगा की, गरमीयों में धूप से परेशान होके, आपने अचानक लोगों की भिड देखी होगी, “जहा मटके को लाल रंग के गिले कपडे से लपेटकर, अंदर बर्फ के टुकडे डालकर, मस्त हिलाकर गिलास में लेकर, पुराने गवैया जैसे उपर निचे हवा में एक गिलास से दुसरे गिलास में झेला जाता होगा”। आपने भिड में जाकर वो छास खरिदकर, बडे शिद्दत से उसका मजा चसका होगा । उसमें मसाला, धनियाँ और जिरा डालके आपको उन्होने सौपा होगा।
अभी सुनिए मेरी कुछ पंक्तियाँ ~
“गरमी में डालो छास में आईस छास बन गया व्हेरी नाईस! छास छास छास पिओ ग्लासफूल छास।”
“ठंडे ठंडे छास को पिना चाहिए । गरमी सहे या ना सहे हमें कुछ छास चाहिए ।”
किसी भी चीज की अच्छी मार्केंटिंग की तो वो सब सच लगने लगता है, जैसे की ये पंक्तियाँ अगर तुम बार बार सुनोगे तो तुम्हे यकिन हो जाएगा की छास ठंडा है, और गरमी में इसे पिने से ही हमें कुछ ठंडक पहुचेगी ।
आपने देखे होगे कई व्हिडियोज लाईक Top 5 Health Drinks For Summer. जिसमें किसी ले मॅन ने या योगा टिचर ने या सेल्फ डिक्लेअर्ड सो काॅल्ड हेल्थ कोच ने आपको छास के गुणगान गाएँ होंगे ।
मित्रो लेकिन ट्विस्ट तो अब है जानी, आपको किसी ने सुनाई है, झुठी कहानी ।
अभि हम सुनेंगे छास कि सच्ची कहानी एक वैद्य कि जुबानी ।
मिस्टर मोबाईल किडेराव (किडू):
भिडू, क्यू बुलाया ?, तूने आज भर दोपहर में मुझे, ईतना क्या अर्जंट काम आन पडा था ?
भिडू :
कुछ नही यार, अभी अभी स्विमिंग टँक से निकला और सोचा कुछ ठंडा पिए । वैसे अकेले में पिने की आदत नही और ये बुरी आदत भी नही, जिससे मुझे भाभी की मार पडे । इसिलिए तुझे याद किया ।
हमारे यहाँ एक छास की टपरी है जिसका नाम है “छास में कुछ खास” । क्या बढियाँ टेस्ट है उसकी, बताऊ तुझे ?
किडू :
अरे यार बच्चे की जान लेगा क्या अभि, सिर्फ स्टोरी बताके। (चल निकलते है बोल के, मै उसके बुलेट पे बैठा । फटफटफटफट करके हम फटाफट पहुँचे । )
एक लंबी लाईन देख के मै बोला, भिडू ये कैसी भिड है ?, बाप्पा ईस बार सच्ची में जल्दी आ गए क्या ?
भिडू :
अरे आगे देख पगले ये छासुलाल कि भिड है ।
वहा अचानक हमे साईड से गुजरते हुए मेरा और एक मित्र मिला ज्ञानचंद.
मैने उसे बुलाया – अरे ज्ञानी कहा चलाँ ज्ञान बाटने ?
ज्ञानी :
कुछ नही यार मै निकला हूँ, “गुलाब शरबत” पिने।
गरमीयों में ठंडकवाली राहत पाने के लिए।
भिडू :
अरे चलबे उससे अच्छा है, तू छास पिले हमारे साथ वो काफी ठंडक पहुचाएँगा ।
ज्ञानी :
तुझे किसने कहा कि छास ठंडा है ।
भिडू और किडू :
अबे चूप!, छास ठंडा ही तो होता है ।
ज्ञानी :
रुक तू नही मानेगा, मै मेरा एक मित्र वैद्य है, जिसने टिलक आयुर्वेद महाविद्यालय, रास्तापेठ – पूणे में पढाई की है, ऊसे बुलाता हूँ।
(टिरिंग $ टिरिंग $ टिरिंग $ टिरिंग $)
मंगल कैसा है? आता है क्या?, जरा बन्सिवाले चौक में हमें आयुर्वेदिक ज्ञान के पाठ पढाने।
वैद्य मंगल :
क्यो नही ?, मै तो ऊसके लिए हमेंशा तैय्यार रहता हूँ, अभी आया।
ज्ञानी, किडू और भिडू :
हमारे अंदर का healthosopher जाग उठा और हमने पुछा !,
मंगल जी हमे एक जटिल प्रश्न है, “To drink or not, that is the question because buttermilk is hot or cold. That is the confusion.”
वैद्य मंगल :
छास मधुर, अम्ल और अनुरस में कषैला होता है। उसका विपाक मधुर और वीर्य उष्ण होता है।
यह पचने में हलका, रुक्ष, भूक बढाने वाला है । ग्राही यानी मल को बांधनेवाला मतलब जुलाब ठिक करनेवाला है ।
कफ और वात कम करता है।
ये कषैला रस, उष्णवीर्य, विकासी आणि रुक्ष गुण के कारन कफज विकारों में लाभदायी है।
मधुर, अम्ल, सांद्र होने से वातविकारों मे भी हितकर है।
छास मधुर विपाकी होने के कारण, ज्यादा पित्तप्रकोप नही करता.
ताजा छास जलन पैदा नही करता. (च.चि.15/117-118) (सं.सू.1)
ज्ञानी :
वैद्यजी कभी कभी छास के पिने से किसी किसी को कफ क्यू पैदा होता है ?
वैद्य मंगल :
छास अगर मधुर हो तो वो कफ प्रकोप करता है और पित्त का शमन करता है। अगर यह अम्ल रसात्मक हो तो वात को घटाता है और पित्त को बढाता है। (सु.सू.45/88) (सं.सू.2)
अनुभवजन्य विवेचन ~
वैसे यह साधारण समदोष प्रकृती वालो को और निरामय व्यक्तीयों को नुकसान नही पहुचाता लेकिन, समझो जो पहले से ही कफ विकार से पिडित है, उनमें मधुर छास से कफ बढेगा और जो पहले से ही पित्तविकार से पीड़ित है उनमें अम्ल रसात्मक छास से पित्त बढेगा ।
ज्ञानी :
क्या हम छास का प्रयोग तीनो प्रकार के दोषज विकारों में, कुछ होशियारी से कर सकते है ?
बहुत ही सुंदर सवाल पुछा है, तुमने ।
क्यो नही !, हम जरुर छास का प्रयोग दिमाग लडा के अलग तरीके से कर सकते है।
यदि वातप्रकोप हो तो खट्टे छास में सेंधानमक मिलाकर पिए ; पित्तज विकारों में मीठे छास में शर्करा मिलाकर लें और कफज विकार हो तो व्योष (त्रिकटु – सोंठ, मरिच, पिप्पली) तथा क्षार मिलाकर छास का सेवन करें ।॥ ८९ ॥ (सु.सू.45/89) (सं.सू.3)
भिडू :
क्या ईसके कुछ health benefits है ?
वैद्य मंगल :
गर (कृत्रिम विष), सूजन, जुलाब (diarrhoea), ग्रहणी (IBS), पाण्डु (Anaemia), अर्श (बवासीर) (Piles), प्लीहा (Spleen disorders), गुल्म, अरुची (Tastelessness), विषम ज्वर, तृष्णा (ज्यादा प्यास लगना), छर्दि (Vomiting), Vomiting like feeling (Nausea), उदरशूल (Abdominal pain), मोटापा (Obesity) और मूत्रकृच्छ्र (Dysuria) (Scanty or Painful Urination), स्नेहव्यापद (Complications caused by oleation therapy) इन विकारो में छास लाभदायक है । तथा अवृष्य है। ॥ (सु.सू.45/84) (सं.सू.4)
उदर रोग (Ascites) और बवासीर विकार में जिस जिस तरह छास प्रयोग का विधान किया है, वे सभी छास प्रयोग के तरीके ग्रहणी मे भी प्रशस्त है । (च.चि. 15/119) (सं.सू.5)
ज्ञानी :
वैसे छास किन किन बिमारियों की चिकित्सा में श्रेष्ठ कहा गया है ?
वैद्य मंगल :
छास सूजन (Oedema), बवासीर, (Piles), ग्रहणी (IBS), मूत्रग्रह, उदर (Ascites), अरुचि (Tastelessness), स्नेहव्यापद (Ghee or other oleation measures Overdose Induced Diseases), पाण्डु (anemia), विषविकार (Diseases due to poison) इन व्याधीयों के ईलाज मे सर्वश्रेष्ठ है । (च.सू. 25 यज्जपुरुषीय) (संदर्भ सूचि 6 a) (च.सू.27/229) (सं.सू.6 b)
भिडू
तूँद पे हात घूमा के बोला, वो सब छोडो, “मुझे वो आप मोटापे में इसकी महती बता रहे थे, वो बताएँ ।”
वैद्य मंगल :
ज्यादा पोषण या मोटापा की वजह से होनेवाली व्याधीयों में छास का प्रयोग सराहनीय है ।
छास को हिरडा या त्रिफला के साथ सेवन करने से मोटापा कम करने मे मदत होती है ।
(च.सू.23/17 संतर्पणीयम् अध्यायं) (सं.सू.7)
किडू :
वैद्यजी आपने कहा की बवासीर में छास उत्तम होता है । उसके बारे में थोडी अधिक जानकारी दिजिए ना ।
वैद्य मंगल :
वातकफज बवासीर के लिए छास के जैसी कोई श्रेष्ठ औषधी नही है। वात की प्रबलता होनेपर स्नेह के साथ और कफ की प्रबलता होने पर स्नेह के बिना ही छास का सेवन करे। इसी तरह 7,10,15 या 30 दिन तक हम इसका प्रयोग कर सकते है । (च.चि.14/77-78) (सं.सू.8)
किडू :
छास गरमीयो में लेना ज्यादा उचित है कि सर्दियो में ?, ये पहले बताओ, वरणा आज हमारी “ढिशूम ढिशूम $” फिक्स है !
वैद्य मंगल :
शीतकाल, अग्निमान्द्य (भूक कम लगना), कफज विकार, स्रोतोरोध और (कोष्ठस्थ) वायु के विकारों
में छास का सेवन लाभकर होता है। (सु.सू.45/87) (सं.सू.9)
भिडू :
वैद्यजी, छास वैसे गरम है कि ठंडा ये पहले बताओ, सब ने मेरे दिमाग का दही बना के रखा है, उसका छास बनने से पहले, मुझे जवाब चाहिए ।
वैद्य मंगल :
छास उष्ण वीर्य है, ये तो मैने पहले बताया ही है, लेकिन उसका मधुर विपाक होने से, वो ज्यादा पित्तप्रकोपक नही है, ऐसा भी वर्णन पाया जाता है ।
कटु और अम्ल विपाक वाले द्रव्य अक्सर उष्ण वीर्य होते है और मधुर विपाक वाले अक्सर शीत वीर्य होते है । लेकीन इसमे कुछ अपवाद भी होते है, जैसे कि बादाम मधुर रसात्मक और मधुर विपाकी होने पर भी उष्ण वीर्य है । छास में मधुर अम्ल ये प्रधान रस और कषाय ये अनुरस और मधुर विपाक और उष्ण वीर्य मौजूद है ।
ज्ञानी :
अभी ये भी बताओ कि वैसे छास पित्त कम करता है, या बढाता है ?
वैद्य मंगल :
चरक सूत्रस्थान व्रण प्रश्नाध्याय में पित्तप्रकोपक द्रव्यो कि सूचि में चरकाचार्य जी ने दही, छास, कूर्चिका और मस्तू का उल्लेख किया है । (च.सू.21/21) (सं.सू.10)
किडू और भिडू :
पित्त की बीमारियों में छास उचित होता है, या नही ?
वैद्य मंगल :
वात और कफदोष से पीडित व्यक्तीयों को शरीर में भारीपन, अरुचि, मंदाग्नि आणि जुलाब जैसी तकलिफे हो, तो तक्रसेवन अमृतसमान लाभदायी होता है । (च.चि.13/106) (सं.सू.11)
२० कफज और ८० वातज नानात्मक व्याधी मिलाके १०० प्रकार कि नानात्मज व्याधीयों में, छास से बहतर कोई दवा नही है । (चक्रदत्त (सं.सू.12)
भिडू :
क्या इसका मतलब यह है कि पित्तविकार पिडित व्यक्ती तक्र का सेवन बिलकूल ना करे ?
ज्ञानी :
वातविकार में अम्ल द्रव्यों के साथ, पित्त विकार में मधुर द्रव्यो के साथ और कफ विकार मे कषाय द्रव्यों के साथ तक्र का प्रयोग लाभकर होता है । इस प्रकार छास का इस्तेमाल करने पर जिस तरह देवों को अमृत हितकर होता है, उसी तरह मनुष्यों को छास हितकर होता है । (राजनिघण्टू) (सं.सू.13)
ज्ञानी :
वैद्यजी हमे बताएँ किन किन अवस्थाओं में हम छास का सेवन ना करे ?
वैद्य मंगल :
छास व्रणावस्था (wound), उष्णकाल (शरद्ग्रीष्मयोः) (अक्टूबर और मे कि गरमीयों में), दुर्बल व्यक्ति, मूर्च्छा, भ्रम (Giddiness), दाह (Burning)
से पीङित तथा रक्तपित्त रोग में नहीं देना चाहिए ॥ (सु.सू.45/86) (सं.सू.14)
ज्ञानी :
मैने सुना है कि कुछ food combinations slow poison जैसे होते है, जिन्हे non compatible food या विरुद्धाहार कहाँ जाता है, वैसे छास के साथ नुकसानदायक कुछ पदार्थ है क्या ?, जो विरुद्धाहार हो?
वैद्य मंगल :
हा काफि अच्छा सवाल पुछा तुमने, छास से सिद्ध किया हुआ कपिला चूर्ण, विरुद्धाहार बताया गया है। कपिला कृमियों की चिकित्सा में अत्यंत उपयोगी औषधी है । (च.सू.26/84 आत्रेयभद्रकापीय ) (सं.सू.15)
किडू :
वैद्यराज आजकल किसी चीज का ट्रेंड आया तो, लोग हमेशा उसके ही पिछे पड जाते है, जिससे कभी कभी नुकसान भी हो सकता है !, इसिलिए पुछ रहा हूँ कि,
छास रोज लेना उचित होगा कि नही ?
वैद्य मंगल :
नित्य छास का सेवन करनेवालों को प्रायः रोग नही होते। जैसे देवों को अमृत सुखकारक होता है, वैसे ही मनुष्योंको भूमि पर छास ही अमृततुल्य होता है । (औषधी बाड 46,119) (सं.सू.16)
ज्ञानी :
मैने सुना है, पहले कुछ बीमारियों में सिर्फ छास या सिर्फ दूध पर रखा करते थे, कृपया उसके बारे में कुछ बताए ।
वेद्य मंगल :
जिहाँ आपने सही सुना है, जब बवासीर, ग्रहणी और उदर जैसे विकार उसकी परम सीमा पर होते है और जाठराग्नि दुर्बल होता है । तब सिर्फ छास पर कुछ दिन रुग्ण को रख के, फिर धीरे धीरे पचने मे हलके से लेकर पचने में साधारण, लेकिन छास में ही सिद्ध किए हुए पदार्थ लेके, फिर धीरे धीरे छास के बिना, सिर्फ साधारण आहार पर लाया जाता है । इसे छास का उत्कर्ष अपकर्ष कहा जाता है । जो रुग्ण शक्ति बढाने के लिए उसका संवर्धन करने के लिए, और जाठराग्नि को सुस्थिर करने के लिए बताया गया है ।
शारीरिक और मानसिक बल बढाने के लिए और स्वाभाविक वर्णप्राप्ती के लिए छास प्रयोग बताया गया है । (च.चि.14/82-83) (सं.सू.17)
ज्ञानी :
छास के सेवन के कुछ अलग अलग तरीके है क्या ?
वैद्य मंगल :
रोगी के शरीर में कौनसा दोष बढा है ? उसका अग्निबल कैसा है, इसका यथायोग्य विचार करके, वैद्य ने तीन तरीके से छास का प्रयोग करना चाहिए ।
१. रूक्ष तक्र (मलई निकाला हुआ छास).
२. अर्धोधृत स्नेह तक्र (आधी मलई निकाला हुआ छास) ३. अनधृत स्नेह तक्र (मलई ना निकाला हुआ छास) ये तीन प्रकार से तक्र का सेवन किया जा सकता है । इस प्रकार सावधानीपूर्वक छास का सेवन करने पर नष्ट हुए बवासीर के अंकुर पुनः उत्पन्न नही होते । (च.चि.14/84-85) (सं.सू.18)
किडू और भिडू :
अभी ये तो हमारे सिर के उपर से जाने लगा है, कृपया थोडा आसान करके बताए ।
वैद्य मंगल :
रुकिए मै समझाता हूँ ।
अभी आपको समझने में आसानी होगी ।
अग्नि मंद है तो रुक्ष तक्र, अग्नि मध्यम है तो अर्धोधृत स्नेह तक्र और अग्नि अच्छा हो तो अनधृत स्नेह तक्र का प्रयोजन करे ।
कफ विकार में रुक्ष तक्र, निराम पित्तविकार में अर्धोधृत स्नेह तक्र और वातविकार में अनधृत स्नेह तक्र का प्रयोजन करे ।
भिडू :
बहुत सारे हेल्थ कोचेस गरमी में छास ठंडेपण के लिए पिने कि सलाह देते है ।
वैद्य मंगल :
आजकल आयुर्वेद आगे लगाने से, कुध भी बिकता है और किसी भी चीज का भाव बढ जाता है । आजकल जिसे भी आॅनलाईन हिट होना है, वो बिना किसी आयुर्वेद डिग्री के, आयुर्वेद के नाम पर कुछ भी ज्ञान बरसाने लगते है और खुद को सेल्फ डिक्लेअर्ड, सो काॅल्ड हेल्थ कोचेस जताने लगते है ।
चरक संहिता में बवासीर की चिकित्सा के अध्याय मे लिखा ये वर्णन पढने पर, जिसके पास थोडा भी दिमाग है, वो आसानी से समझ जाएगा; छास ठंडा है, या नही ?
जमिन पर छास गिरने पर वहा की घास या लताएँ भी जल जाती है, तो छास मनुष्य के जाठराग्नि को बढाकर बवासीर को समूल नष्ट कर सकता है, इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? (च.चि.14/85-86) (सं.सू.19)
किडू :
वैसे छास के निरंतर सेवन से क्या क्या लाभ होते है ?
वैद्य मंगल :
छास के निरंतर सेवन से रसवाही स्रोतसों की शुद्धी होती है और जो आहाररस स्रोतसों में आता है उससे शरिर की पुष्टि, बलवृद्धी, वर्ण कि निर्मलता और मन की प्रसन्नता उत्पन्न होती है । (च.चि.14/87-88) (सं.सू.20)
संदर्भसूची :
(1)तक्रं तु ग्रहणीदोषे दीपनग्राहिलाघवात् ॥ ११७ ॥ श्रेष्ठं मधुरपाकित्वान्न च पित्तं प्रकोपयेत् । कषायोष्णविकाशित्वाद्रौक्ष्याच्चैव कफे हितम् ।। ११८ ।।
वाते स्वाद्वम्लसान्द्रत्वात् सद्यस्कमविदाहि तत् । (च.चि.15/117-118)
(2)तक्र के रसानुरुप गुण :
तत् पुनर्मधुरं श्लेष्मप्रकोपणं पित्तप्रशमनं च; अम्लं वातघ्नं पित्तकरं च ।। (सु.सू.45/88)
(3)तक्र का दोषानुसार प्रयोग –
वातेऽम्लं सैन्धवोपेतं स्वादु पित्ते सशर्करम् ।
पिबेत्तक्रं कफे चापि व्योषक्षारसमन्वितम् ।। (सु.सू.45/89)
(4)(सु.सू.45/84)
(5)तस्मात् तक्रप्रयोगा ये जठराणां तथाऽर्शसाम् । विहिता ग्रहणीदोषे सर्वशस्तान् प्रयोजयेत् ।(च.चि. 15/119)
(6 a)अग्र्यसंग्रह :
तक्राभ्यासो ग्रहणीदोष शोफार्शोघृतव्यापत्प्रशमनानां । (च.सू. 25 यज्जपुरुषीय)
(6 b)शोफार्शोग्रहणीदोषमूत्रग्रहोदरारुचौ । स्नेहव्यापदि पाण्डुत्वे तक्रं दद्याद्गरेषु च ॥ च.सू.27/229
(7)संतर्पणोत्थ व्याधी चिकित्सा :
ज्यादा पोषण या मोटापा की वजह से होनेवाली व्याधीयाँ
तक्राभयाप्रयोगैश्च त्रिफलायास्तथैव च् ।
अरिष्टानां प्रयोगैश्च यान्ति मेहादयः शमम् ।। (च.सू. 23/17)
(8)वातकफज बवासीर में तक्र की प्रशस्ती :
वातश्लेष्मार्शसां तक्रात् परं नास्तीह भेषजम् ।
तत् प्रयोज्यं यथादोषं सस्नेहं रुक्षमेव वा ॥ ७७ ॥
सप्ताहं वा दशाहं वा पक्षं मासमथापि वा ।
बलकालविशेषज्ञो भिषक् तक्रं प्रयोजयेत् ॥ ७८ ॥ (च.चि.14/77-78)
(9)तक्र की प्रशस्ती :
शीतकालेऽग्निमान्द्ये च कफोत्थेष्वामयेषु च।
मार्गावरोधे दुष्टे च वायौ तक्रं प्रशस्यते । (सु.सू.45/87)
(10)पित्तप्रकोपण द्रव्य :
क्रोधशोकभयायासोपवासविदग्धमैथुनोपगमनकङ्गम्ललवणतीक्ष्णोष्णलघुविदाहितिलतैल-
पिण्याककुलत्थसर्षपातसीहरितकशाकगोधामत्स्याजाविकमांसदधितक्रकूर्चिकामस्तुसौवीरकसुरावि- काराम्लफलकङ्गरप्रभूतिभिः पित्तं प्रकोपमापद्यते ।। २१ ।।
(11)वातकफज व्याधीयों में तक्र की प्रशस्ती :
गौरवारोचकार्तानां समन्दाग्न्यतिसारिणाम् ।
तक्रं वातकफार्तानाममृतत्वाय कल्पते ।। (च.चि.13/106 उदर चिकित्सा अध्याय)
(12)वातश्लेष्मविकाराणां शतं चापि निवर्तते ।
नास्ति तक्रात् परं किंचिदौषधं कफवातजे ॥ ८८ ॥(चक्रदत्त)
विदाहि ‘द्रव्यस्वभावादथ गौरवाद्वा चिरेण पाकं जठराग्नियोगात्। पित्तप्रकोपं विदहत् करोति तदन्नपानं कथितं विदाहि’ ।। (डल्हण द्वारा उद्धृत तन्त्रान्तरीय वचन-सु.सू.४५/१५८)।
कूर्चिका- ‘दध्ना तक्रेण वा सहपाकात् पृथग्भूतघनद्रवभागं क्षीरं कूर्चिकेति विदुः’ (हेमाद्रिः)।
मस्तु ‘दध्नो मण्डस्तु मस्त्विति’ ।
(13)अम्लेन वातं मधुरेण पित्त कफं कषायेण निहन्ति सद्यः । यथा सुराणां अमृतं हिताय तथा नराणांमिह तक्रमाहुः । (रा.नि.)
(14)तक्र का निषेध :
नैव तक्रं क्षते दद्यान्नोष्णकाले न दुर्बले । न मूर्च्छाभ्रमदाहेषु न रोगे रक्तपैत्तिके ॥ (सु.सू.45/86)
(15)विरुद्धाहार :
तक्रसिद्धः कम्पिलकः (च.सू.26/84 आत्रेयभद्रकापीय )
(16)नित्य तक्र सेवन के लाभ –
न तक्रसेवी व्यथते कदाचिन्न तक्रदग्धाः प्रभवंति रोगाः ॥
यथासुराणाममृतं सुखाय तथा नराणां भुवि तक्रमाहुः ॥ (औषधी बाड 46,119)
(17)छास का उत्कर्ष अपकर्ष प्रयोजन और उससे होनेवाले लाभ :
कालक्रमज्ञः सहसा न च तक्रं निवर्तयेत् ।
तक्रप्रयोगो मासान्तः क्रमेणोपरमो हितः ॥ ८२ ।। अपकर्षो यथोत्कर्षो न त्वन्नादपकृप्यते । शक्त्यागमनरक्षार्थ दार्ढ्यार्थमनलस्य च ॥ ८३ ॥ बलोपचयवर्णार्थमेष निर्दिश्यते क्रमः। (च.चि.14/82-83)
(18)तक्र सेवन के तरीके :
रुक्षमर्धोद्धृतस्नेहं यतश्चानुद्धृतं घृतम् ॥ ८४ ॥
तक्रं दोषाग्निबलवित्त्रिविधं तत् प्रयोजयेत् । (च.चि.14/84-85)
(19)बवासीर की चिकित्सा में छास का महत्व :
हतानि न विरोहन्ति तत्रेण गुदजानि तु ॥ ८५ ॥
भूमावपि निषिक्तं तद्दहेत्तत्रं तृणोलुपम् ।
किं पुनर्दिप्तकायाग्नेः शुष्काण्यर्शांसि देहिनः ॥ ८६ ।। (च.चि.14/85-86)
(20)छास के नित्यसेवन से होनेवाले लाभ :
स्रोतःसु तक्रशुद्धेषु रसः सम्यगुपैति यः ।
तेन पुष्टिर्बलं वर्णः प्रहर्षश्चोपजायते ॥ ८७ ॥ (च.चि.14/87-88)
Author ~ Dr Mangesh P Desai
Ayurvedic Diet & Lifestyle Expert
Health Blogger | Poet |
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Moderator ~ Dr Priyanka M Desai
Ayurvedic Beauty & Hair Care Expert